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बीए सेमेस्टर-3 शिक्षाशास्त्र

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2653
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-3 शिक्षाशास्त्र

प्रश्न- मानव विकास की विभिन्न अवस्थाओं हेतु रूसो द्वारा प्रतिपादित शिक्षा योजना का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।

उत्तर -

रूसो के अनुसार मानव विकास की अवस्थायें और शिक्षा
(Stages of Human Development and Education according to Rousseau)

रूसो ने अपनी प्राकृतिक विचारधारा के अनुसार, मानव विकास को निम्नलिखित चार अवस्थाओं में विभाजित किया है-

1. शैशव - जन्म से पाँच वर्ष की अवस्था तक।
2. बाल्यावस्था - 5 वर्ष से 12 वर्ष की अवस्था तक।
3. कैशोर्य - 12 वर्ष से 15 वर्ष की अवस्था तक।
4. युवावस्था - 15 से 20 वर्ष की अवस्था तक।

ये अवस्थायें एक-दूसरे पर निर्भर हैं इसलिए इन्हें एक-दूसरे से पृथक् रखकर शिक्षा देना ठीक नहीं। वह प्रत्येक अवस्था की आवश्यकता को पृथक मानता है। अवस्था बदलने पर रुचियाँ बदलती हैं और विवेक विकासशील होता है।

शैशव और शिक्षा
(Infancy and Education)

शिशु स्वभाव से क्रियान्मुख होता है। उसे कोई भी वस्तु मिल जाए वह उसी से खेलने लगता है, उसे पटकता है, मुँह में डाल लेता है। बालक को ऐसे में अच्छे खिलौने देना आवश्यक है। खिलौने सस्ते, साधारण, हल्के और हानि न पहुँचाने वाले होने चाहिये। सोने-चाँदी की कीमती घण्टियाँ, शीशे, लोहे और लकड़ी के खिलौने अच्छे नहीं होते, इनसे चोट लगने का भय बना रहता है। रूसो कहता है- बालक को फूल, पत्तियाँ और फल जैसे प्राकृतिक और कोमल पदार्थ खेलने को दिए जाएँ। हानिकारक वस्तु या खिलौने स्वास्थ्य के लिये अच्छे नहीं होते। अतः ऐसे पदार्थ बालक के आस-पास नहीं होने चाहिए।

बच्चों को ऐसे कपड़े पहनाए जायें जिससे अंगों के संचालन में कोई बाधा न आये। कपड़े अधिक तंग और चुस्त न हों। बच्चे का पालन (दाइयों) द्वारा कराना उचित नहीं। वे माँ जैसा प्यार नहीं देती। बच्चे का पालन-पोषण माँ को स्वयं करना चाहिए।

सामान्य व स्वस्थ विकास होने पर बच्चा स्वतः ही समय पर उठने, चलने, बात करने या बोलने लगेगा। समय से पूर्व उसे बोलने का अभ्यास कराना स्वाभाविक नहीं है। बालक की भाषा के विकास में माँ और घर के लोगों का भारी योग होता है। बालक के स्वभाव के अनुकूल शब्दों के प्रयोग करके बालक की शब्दावली का विकास किया जा सकता है। रूसो के अनुसार, शिशु की शिक्षा निषेधात्मक होनी चाहिए। शिशु में कोई आदत न डाली जाए। उसे बुरी आदतों से बचाकर रखा जाये। बालक स्वाभाविक क्रियायें करके अपना स्वाभाविक विकास कर सके, उसके लिए उचित वातावरण दिया जाना चाहिये।

बाल्यावस्था और शिक्षा
(Childhood and Education)

इस अवस्था के बच्चों के लिये ज्ञानेन्द्रियाँ प्रशिक्षण व्यवस्था करना जरूरी है। रूसो का कहना है-

"सर्वप्रथम ज्ञानेन्द्रियाँ ही बलवती होती हैं इसलिए हमें उन्हें प्रशिक्षित करना चाहिए परन्तु हम उनकी उपेक्षा करते हैं। "

"बच्चा सब कुछ छूना चाहता है, उठाना चाहता है, उसकी इस गति को रोकना ठीक नहीं। ऐसा करने पर ही वह गर्म, ठण्डे, कोमल, कठोर, रूप और आकार का ज्ञान प्राप्त कर सकेगा। वह ऐसी क्रियाओं में स्पर्श और दृष्टि का उपयोग अच्छी प्रकार करता है। इस प्रकार उँगलियों की क्रियाओं तथा आँखों में एक सामंजस्य पैदा हो जाता है।"

बच्चा जब चलना सीख जाता है तो वह चुपचाप कमरे में घुसकर घूर घूर कर देखता है, सूंघता है, हाथों को काम में लाकर वस्तुओं को छूता है। बिल्ली घ्रण-शक्ति से पहचान करती है तो बच्चा देखकर और छूकर वस्तुओं को पहचानने का प्रयत्न करता है। बालक की इन क्रियाओं में कोई बाधा नहीं आनी चाहिए। यदि कोई बाधा आयी तो बालक बुद्ध बना रहेगा और उसकी क्रियाशीलता कुण्ठित हो जायेगी। हमारी ज्ञानेन्द्रियाँ हमारे विवेक का आधार होती हैं और सामाजिक क्रियाओं के प्रति सचेत रहती हैं।

रूसो के अनुसार - " दर्शनशास्त्र का पहला पाठ हमें, हमारे हाथ-पैर, आँख, कान आदि ही पढ़ाते हैं। यदि पुस्तकों को इनका स्थान दे दिया जाये तो इनका उपयोग नहीं होगा और विवेक विकसित नहीं होगा। ऐसे में हम दूसरे के विवेक का उपयोग करेंगे और हमें दूसरे की बात पर विश्वास कर लेना पड़ेगा। ऐसा करते-करते हम आदी हो जाते हैं और कुछ सीखने में असमर्थ रहते हैं"

आगे रूसो कहता है-"यदि हम सोचना या चिन्तन करना सीखना चाहते हैं तो अपनी ज्ञानेन्द्रियों और अंगों को शिक्षा देनी होगी, क्योंकि ये ही बुद्धि के अस्त्र हैं, शरीर को शक्तिशाली बनाने से ही इन अस्त्रों को काम में लाया जा सकता है। स्वस्थ शरीर के माध्यम से ही मानसिक क्रियाएँ सरल होती हैं।

बच्चा जब वस्तुओं को पहचानने लगे तो उसे ऐसी वस्तुओं की पहचान करने का वातावरण और अवसर देना चाहिए। रूसो कहता है कि बच्चा जलवायु और वातावरण को भली प्रकार सहन कर सके। बालक ऐसे सिर को अधिक न ढके प्रायः सिर खुला रखे, कम-से-कम कपड़े पहने, खुला शरीर रहे, दौड़े कूदे, और घूमे। ये सभी काम वह जी खोलकर करे। बालक की आँख को इतना अच्छा प्रशिक्षण मिले कि वह एक बार में ही देखकर ऊँचाई दूरी, माप और तौल का अनुमान लगा सके। संगीत के माध्यम से कानों को, विविध गन्धों से नाक को, विविध वस्तुओं को स्पर्श द्वारा त्वचा को और स्वाद द्वारा जीभ को प्रशिक्षित किया जाये। बालक के सामने कोई स्वाभाविक समस्या रखी जाए जिसका हल वह स्वयं ही अपनी ज्ञानेन्द्रियों के द्वारा खोजे। बच्चे को रेखागणित सिखाने का अभ्यास कराना चाहिये।

12 वर्ष की अवस्था तक बालक की शिक्षा अनुभव प्रधान होना चाहिए। परन्तु हम रूसो की अनुभव प्रधान शिक्षा से सहमत नहीं हैं, क्योंकि बालक के स्वानुभव इतने कम, अव्यवस्थित और अपूर्ण होते हैं कि उनसे उसका वांछित विकास हो ही नहीं सकता। बालक चाकू से हाथ काटने का या आग में हाथ देकर उसे जलाने का स्वानुभव लेना चाहे तो यह बहुत घातक हो सकता है। इसलिये बालक को ऐसे अनुभवों से बचाना चाहिए। इस प्रकार प्रत्येक बात स्वानुभव के आधार पर सीखना मुक्ति संगत नहीं है। परन्तु रूसो की इस बात में सत्यता है कि स्वानुभाव अच्छा और स्थायी ज्ञान देता है। अतः शिक्षा में परानुभवों के साथ-साथ स्वानुभव अर्जित करने तथा वास्तविकता की खोज करने के अवसर जुटाने बहुत आवश्यक हैं।

कैशोर्य और शिक्षा
(Adolescence and Education)

रूसो के अनुसार, कैशोर्य 12 से 15 वर्ष तक की आयु तक का माना जाता है। इस समय किशोर को अन्वेषण करने की जिज्ञासा रखने के लिए प्रोत्साहित किया जाये। जब किशोर में स्वाभाविक जिज्ञासा पैदा होने लगे तो उसे प्राकृतिक विज्ञानों के अध्ययन का अवसर दिया जाये। रूसों के अनुसार, कैशोर्य अध्ययन करने का परिश्रम करने और शिक्षा प्राप्त करने का सर्वोत्तम समय है। वे निश्चय ही किसी निर्माण कार्य को व्यावसायिक या औद्योगिक कार्य को सीखें। इसके अवसर जुटाये जायें।

रूसो कहता है-- " किशोर की समझ के अनुकूल उससे प्रश्न करो और उसे सोचने दो।" उसके अनुसार, भूगोल और खगोल विज्ञान मानचित्रों की सहायता से न पढ़ाया जाये, क्योंकि इनसे किशोरों को पृथ्वी आदि का गलत ज्ञान मिलता है। भूगोल आदि विषय बालकों को समयानुसार, प्रत्येक ऋतु में जलवायु, लयक्रम, हवा, सूर्य का छिपना और उदय होना, पर्यटन (excursion) तथा निरीक्षण (Observation) के माध्यम से समझाया जाए। बालक प्रत्यक्ष दर्शन और प्रकृति-दर्शन के माध्यम से बहुत अच्छा सीखता है। किशोरों को पाठ्यक्रम पुस्तकों के माध्यम से बिल्कुल न पढ़ाया जाये इससे उनका ज्ञानात्मक विकास रुक जाएगा।

युवावस्था और शिक्षा
(Youth and Education)

रूसो के अनुसार, युवावस्था 15 से 20 वर्ष तक होती है। इस अवस्था में स्त्री-पुरुष एक-दूसरे के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त करें तो उनके स्वभाव के अनुकूल होगा। इस समय यौन सम्बन्धी शिक्षा अनिवार्य हो जाती है। इसी समय व्यक्ति सामाजिक और नैतिक कर्त्तव्यों का ज्ञान प्राप्त कर सकता है।

रूसो कहता है- " जब एमील साथी की आवश्यकता अनुभव करेगा तब उसे अकेला नहीं छोड़ा जायेगा। हमने अब तक उसे शारीरिक ज्ञानेन्द्रिय सम्बन्धी और बौद्धिक बल दिया है, अब उसे 'हृदय' भी देना है। "

रूसो इस अवस्था में सामजिकता और नैतिकता की शिक्षा देना चाहता है, जबकि उसने किशोर को समाज से सदैव दूर रखा है। वह किस जादू के बल पर युवकों या युवतियों को आदर्श सामाजिक और नैतिक बना सकेगा? उसने नैतिक शिक्षा का अवसर बालकों को कभी दिया ही नहीं।

वह चाहता है कि युवक स्वयं सामाजिक स्थलों पर, जैसे- स्कूल, अस्पताल, जेलखाना, अनाथालय आदि पर जायें और देंखे कि उनमें क्या बुराइयाँ और अनैतिकताएँ विद्यमान हैं। वह समाज के सम्पर्क में आकर दीन-दुःखी लोगों को देखेगा तो उसमें सहानुभूति के कारण दया और करुणा उपजेगी। उसे सभी मानव-समाज और प्राणियों के साथ प्रेम करने की आवश्यकता अनुभव होगी। परन्तु रूसो कहता है कि युवाओं को ऐसे सामाजिक स्थलों पर बार-बार नहीं भेजना चाहिए। इससे वह कठोर हृदय वाला व्यक्ति बन सकता है। इस समय इतिहास की शिक्षा इतने स्वाभाविक ढंग से दी जायेगी कि वर्तमान की दशाओं को देखकर इतिहास के प्रति कोई भ्रम अनुभव न करे। युवा को इतिहास और नैतिकता द्वारा यह समझाया जायेगा कि समाज में क्या प्रशंसनीय है और क्या निन्दनीय है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- शिक्षा के संकुचित तथा व्यापक अर्थों की व्याख्या कीजिए।
  2. प्रश्न- शिक्षा की अवधारणा स्पष्ट कीजिए तथा शिक्षा की परिभाषा देते हुए इसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  3. प्रश्न- शिक्षा के विभिन्न स्वरूपों की व्याख्या कीजिए। शिक्षा तथा साक्षरता एवं अनुदेशन में क्या मूलभूत अन्तर है?
  4. प्रश्न- शिक्षा के वैयक्तिक एवं सामाजिक उद्देश्यों की विवेचना कीजिए तथा इन दोनों उद्देश्यों में समन्वय को समझाइए।
  5. प्रश्न- "दर्शन जिसका कार्य सूक्ष्म तथा दूरस्थ से रहता है, शिक्षा से कोई सम्बन्ध नहीं रख सकता जिसका कार्य व्यावहारिक और तात्कालिक होता है।" स्पष्ट कीजिए।
  6. प्रश्न- निम्नलिखित को परिभाषित कीजिए तथा शिक्षा के लिए इनके निहितार्थ स्पष्ट कीजिए - (i) तत्व-मीमांसा, (ii) ज्ञान-मीमांसा, (iii) मूल्य-मीमांसा।
  7. प्रश्न- शिक्षा का दर्शन पर प्रभाव बताइये।
  8. प्रश्न- अनुशासन को दर्शन कैसे प्रभावित करता है?
  9. प्रश्न- शिक्षा दर्शन से आप क्या समझते हैं? परिभाषित कीजिए।
  10. प्रश्न- वेदान्त दर्शन क्या है? वेदान्त दर्शन के सिद्धान्त बताइए।
  11. प्रश्न- वेदान्त दर्शन व शिक्षा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। वेदान्त दर्शन में प्रतिपादित शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यचर्या व शिक्षण विधियों की व्याख्या कीजिए।
  12. प्रश्न- वेदान्त दर्शन के शिक्षा में योगदान का मूल्यांकन कीजिए।
  13. प्रश्न- वेदान्त दर्शन की तत्व मीमांसा ज्ञान मीमांसा एवं मूल्य मीमांसा तथा उनके शैक्षिक अभिप्रेतार्थ की व्याख्या कीजिये।
  14. प्रश्न- वेदान्त दर्शन के अनुसार शिक्षार्थी की अवधारणा बताइए।
  15. प्रश्न- वेदान्त दर्शन व अनुशासन पर टिप्पणी लिखिए।
  16. प्रश्न- अद्वैत शिक्षा के मूल सिद्धान्त बताइए।
  17. प्रश्न- अद्वैत वेदान्त दर्शन में दी गयी ब्रह्म की अवधारणा व उसके रूप पर टिप्पणी लिखिए।
  18. प्रश्न- अद्वैत वेदान्त दर्शन के अनुसार आत्म-तत्व से क्या तात्पर्य है?
  19. प्रश्न- गीता में नीतिशास्त्र की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
  20. प्रश्न- गीता में भक्ति मार्ग की महत्ता क्या है?
  21. प्रश्न- श्रीमद्भगवत गीता के विषय विस्तार को संक्षेप में समझाइये |
  22. प्रश्न- गीता के अनुसार कर्म मार्ग क्या है?
  23. प्रश्न- गीता दर्शन में शिक्षा का क्या अर्थ है?
  24. प्रश्न- गीता दर्शन के अन्तर्गत शिक्षा के सिद्धान्तों को बताइए।
  25. प्रश्न- गीता दर्शन में शिक्षालयों का स्वरूप क्या था?
  26. प्रश्न- गीता दर्शन तथा मूल्य मीमांसा को संक्षेप में बताइए।
  27. प्रश्न- गीता में गुरू-शिष्य के सम्बन्ध कैसे थे?
  28. प्रश्न- आदर्शवाद से आप क्या समझते हैं? आदर्शवाद के मूलभूत सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
  29. प्रश्न- आदर्शवाद और शिक्षा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। आदर्शवाद के शिक्षा के उद्देश्यों, पाठ्यचर्या और शिक्षण विधियों का उल्लेख कीजिए।
  30. प्रश्न- आदर्शवाद में शिक्षक की भूमिका को समझाइए।
  31. प्रश्न- आदर्शवाद में शिक्षार्थी का क्या स्थान है?
  32. प्रश्न- आदर्शवाद में विद्यालय की परिकल्पना कीजिए।
  33. प्रश्न- आदर्शवाद में अनुशासन को समझाइए।
  34. प्रश्न- आदर्शवाद के विभिन्न स्वरूपों का वर्णन कीजिए।
  35. प्रश्न- प्रकृतिवाद का अर्थ एवं परिभाषा दीजिए। प्रकृतिवाद के रूपों एवं सिद्धान्तों को संक्षेप में बताइए।
  36. प्रश्न- प्रकृतिवाद और शिक्षा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। प्रकृतिवादी शिक्षा की विशेषताएँ तथा उद्देश्य बताइए।
  37. प्रश्न- प्रकृतिवाद के शिक्षा पाठ्यक्रम और शिक्षण विधि की विवेचना कीजिए।
  38. प्रश्न- "प्रकृतिवाद आधुनिक युग में शिक्षा के क्षेत्र में बाजी हार चुका है।" स्पष्ट कीजिए।
  39. प्रश्न- आदर्शवादी अनुशासन एवं प्रकृतिवादी अनुशासन की क्या संकल्पना है? आप किसे उचित समझते हैं और क्यों?
  40. प्रश्न- प्रकृतिवादी शिक्षण विधियों पर प्रकाश डालिये।
  41. प्रश्न- प्रकृतिवाद तथा शिक्षक पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  42. प्रश्न- प्रकृतिवाद की तत्व मीमांसा क्या है?
  43. प्रश्न- प्रकृतिवाद की ज्ञान मीमांसा क्या है?
  44. प्रश्न- प्रकृतिवाद में शिक्षक एवं छात्र सम्बन्ध स्पष्ट कीजिये।
  45. प्रश्न- प्रकृतिवादी अनुशासन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  46. प्रश्न- शिक्षा की प्रयोजनवादी विचारधारा के प्रमुख तत्वों की विवेचना कीजिए। शिक्षा के उद्देश्यों, शिक्षण विधियों, पाठ्यक्रम, शिक्षक तथा अनुशासन के सम्बन्ध में इनके विचारों को प्रस्तुत कीजिए।
  47. प्रश्न- प्रयोजनवादियों तथा प्रकृतिवादियों द्वारा प्रतिपादित शिक्षण विधियों, शिक्षक तथा अनुशासन की तुलना कीजिए।
  48. प्रश्न- प्रयोजनवाद का मूल्यांकन कीजिए।
  49. प्रश्न- प्रयोजनवाद तथा आदर्शवाद में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  50. प्रश्न- शिक्षा के अर्थ, उद्देश्य तथा शिक्षण-विधि सम्बन्धी विचारों पर प्रकाश डालते हुए गाँधी जी के शिक्षा दर्शन का मूल्यांकन कीजिए।
  51. प्रश्न- गाँधी जी के शिक्षा दर्शन तथा शिक्षा की अवधारणा के विचारों को स्पष्ट कीजिए। उनके शैक्षिक सिद्धान्त वर्तमान भारत की प्रमुख समस्याओं का समाधान कहाँ तक कर सकते हैं?
  52. प्रश्न- बुनियादी शिक्षा क्या है?
  53. प्रश्न- बुनियादी शिक्षा का वर्तमान सन्दर्भ में महत्व बताइए।
  54. प्रश्न- "बुनियादी शिक्षा महात्त्मा गाँधी की महानतम् देन है"। समीक्षा कीजिए।
  55. प्रश्न- गाँधी जी की शिक्षा की परिभाषा की विवेचना कीजिए।
  56. प्रश्न- शारीरिक श्रम का क्या महत्त्व है?
  57. प्रश्न- गाँधी जी की शिल्प आधारित शिक्षा क्या है? शिल्प शिक्षा की आवश्यकता बताते हुए इसकी वर्तमान प्रासंगिकता बताइए।
  58. प्रश्न- वर्धा शिक्षा योजना पर टिप्पणी लिखिए।
  59. प्रश्न- शिक्षा के अर्थ एवं उद्देश्यों, पाठ्यक्रम एवं शिक्षण विधि को स्पष्ट करते हुए स्वामी विवेकानन्द के शिक्षा दर्शन की व्याख्या कीजिए।
  60. प्रश्न- स्वामी विवेकानन्द के अनुसार अनुशासन का अर्थ बताइए। शिक्षक, शिक्षार्थी तथा विद्यालय के सम्बन्ध में स्वामी जी के विचारों को स्पष्ट कीजिए।
  61. प्रश्न- स्त्री शिक्षा के सम्बन्ध में विवेकानन्द के क्या योगदान हैं? लिखिए।
  62. प्रश्न- जन-शिक्षा के विषय में स्वामी विवेकानन्द के विचार बताइए।
  63. प्रश्न- स्वामी विवेकानन्द की मानव निर्माणकारी शिक्षा क्या है?
  64. प्रश्न- डॉ. भीमराव अम्बेडकर के शिक्षा दर्शन पर प्रकाश डालिए।
  65. प्रश्न- डॉ. अम्बेडकर के शिक्षा दर्शन का क्या अभिप्राय है? बताइए।
  66. प्रश्न- जाति भेदभाव को खत्म करने के लिए डॉ. भीमराव अम्बेडकर की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
  67. प्रश्न- डॉ. अम्बेडकर की शिक्षा दर्शन की शिक्षण विधियाँ क्या हैं? बताइए। शिक्षक व शिक्षार्थी सम्बन्ध का वर्णन कीजिए।
  68. प्रश्न- प्रकृतिवाद के सन्दर्भ में रूसो के विचारों का वर्णन कीजिए।
  69. प्रश्न- मानव विकास की विभिन्न अवस्थाओं हेतु रूसो द्वारा प्रतिपादित शिक्षा योजना का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  70. प्रश्न- रूसो की 'निषेधात्मक शिक्षा' की संकल्पना क्या है? सोदाहरण समझाइए।
  71. प्रश्न- रूसो के प्रमुख शैक्षिक विचार क्या हैं?
  72. प्रश्न- जॉन डीवी के शिक्षा दर्शन पर प्रकाश डालते हुए उनके द्वारा निर्धारित शिक्षा व्यवस्था के प्रत्येक पहलू को स्पष्ट कीजिए।
  73. प्रश्न- जॉन डीवी के उपयोगिता शिक्षा सिद्धान्त को स्पष्ट कीजिए।
  74. प्रश्न- आधुनिक शिक्षण विधियों एवं पाठ्यक्रम के निर्धारण में जॉन डीवी के योगदान का वर्णन कीजिए।
  75. प्रश्न- बहुलवाद से क्या तात्पर्य है? राज्य के विषय में बहुलवादियों के क्या विचार हैं?
  76. प्रश्न- बहुलवाद और बहुलसंस्कृतिवाद का क्या आशय है?
  77. प्रश्न- बहुलवाद, बहुलवादी शिक्षा से आपका क्या आशय है? इसकी विधियाँ बताइये।
  78. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण का अर्थ एवं विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  79. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की प्रक्रिया को बताइए।
  80. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के प्रमुख आधारों की विवेचना कीजिए।
  81. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण में जाति, वर्ग एवं लिंग की भूमिका बताइए।
  82. प्रश्न- विद्यालय संगठन से आप क्या समझते हैं? विद्यालय संगठन का अर्थ, उद्देश्य एवं इसकी आवश्यकताओं पर प्रकाश डालिए।
  83. प्रश्न- विद्यालय संगठन की परिभाषाए देते हुए विद्यालय संगठन की विशेषताओं का वर्णन करें।
  84. प्रश्न- विद्यालय संगठन एवं शैक्षिक प्रशासन में सम्बन्ध बताइए।
  85. प्रश्न- विद्यालय संगठन से आप क्या समझते हैं?
  86. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन का क्या अर्थ है? इनसे सम्बन्धित धारणाओं का वर्णन कीजिए।
  87. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के दृष्टिकोण से शिक्षा के प्रमुख कार्यों का उल्लेख कीजिए।
  88. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तनों तथा शिक्षा के पारस्परिक सम्बन्धों को समझाइए |
  89. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में विद्यालय की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
  90. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में बाधा उत्पन्न करने वाले कारकों का उल्लेख कीजिए।
  91. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की विशेषताएँ बताइए।
  92. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के प्रारूप बताइए।
  93. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता से आप क्या समझते हैं? सामाजिक गतिशीलता के विभिन्न कारक एवं शिक्षा की भूमिका का वर्णन कीजिए।
  94. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता के विभिन्न रूपों का विवेचन कीजिए।
  95. प्रश्न- उच्चगामी गतिशीलता क्या है?
  96. प्रश्न- मौलिक अधिकारों का महत्व तथा अर्थ बताइये। मौलिक अधिकार व्यवस्था की प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
  97. प्रश्न- भारतीय नागरिकों को प्राप्त मूल अधिकारों का मूल्यांकन कीजिए।
  98. प्रश्न- भारतीय संविधान के अधिकार पत्र की प्रमुख विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
  99. प्रश्न- मानव अधिकारों की रक्षा के लिए किये गये विशेष प्रयत्न इस दिशा में कितने कारगर हैं? विश्लेषण कीजिए।
  100. प्रश्न- मौलिक अधिकार एवं मानव अधिकारों में अन्तर लिखिए।
  101. प्रश्न- भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों के उल्लेख की आवश्यकता पर टिप्पणी लिखिए।
  102. प्रश्न- मौलिक अधिकार एवं नीति-निदेशक तत्वों में अन्तर बतलाइये।
  103. प्रश्न- विचार एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर टिप्पणी लिखिए।
  104. प्रश्न- सम्पत्ति के अधिकार पर टिप्पणी लिखिए।
  105. प्रश्न- 'निवारक निरोध' से आप क्या समझते हैं?
  106. प्रश्न- क्या मौलिक अधिकारों को निलंबित किया जा सकता है?
  107. प्रश्न- मौलिक कर्त्तव्य कौन-कौन से हैं? इनके महत्व पर प्रकाश डालिये।
  108. प्रश्न- नागरिकों के मूल कर्त्तव्यों की प्रकृति तथा इनके महत्व का उल्लेख कीजिए।
  109. प्रश्न- 'अधिकार तथा कर्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। इस कथन की विवेचना कीजिए।
  110. प्रश्न- नागरिकों के मूल कर्तव्यों का संक्षिप्त विश्लेषण कीजिए।
  111. प्रश्न- मौलिक कर्तव्यों का मूल्यांकन कीजिए।
  112. प्रश्न- नीति निदेशक तत्वों से आप क्या समझते हैं? संविधान में इनके उद्देश्य एवं महत्व का वर्णन कीजिए।
  113. प्रश्न- संविधान में वर्णित नीति निदेशक सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिए।
  114. प्रश्न- मौलिक अधिकारों तथा नीति निदेशक सिद्धान्तों में क्या अन्तर है? स्पष्ट कीजिए।
  115. प्रश्न- नीति निदेशक तत्वों के क्रियान्वयन की आलोचनात्मक व्याख्या अपने शब्दों में कीजिए।
  116. प्रश्न- नीति-निदेशक तत्वों का अर्थ बताइए।
  117. प्रश्न- राज्य के उन नीति निदेशक तत्वों का उल्लेख कीजिये जिन्हें गांधीवाद कहा जाता है।
  118. प्रश्न- नीति निदेशक सिद्धान्तों का महत्व स्पष्ट कीजिए।
  119. प्रश्न- नीति निदेशक तत्वों की प्रकृति अथवा स्वरूप को स्पष्ट कीजिए।
  120. प्रश्न- राष्ट्रीय विकास में शिक्षा की भूमिका को विस्तार से बताइए।
  121. प्रश्न- सतत् विकास के लिए शिक्षा से आप क्या समझते हैं? सतत् विकास में शिक्षा की अवधारणा और उत्पत्ति का वर्णन कीजिए।
  122. प्रश्न- सहस्राब्दी विकास लक्ष्य मिलेनियम डेवलपमेंट गोल्स का निर्धारण कौन-सा संस्थान करता है?
  123. प्रश्न- एमडीजी और एसडीजी के मध्य अन्तर बताइए।
  124. प्रश्न- ज्ञान अर्थव्यवस्था की राह पर विकास के संकेतक के रूप में शिक्षा को संक्षेप में बताइए। ज्ञान अर्थव्यवस्था के महत्व को भी बताइए।
  125. प्रश्न- शिक्षा के उद्देश्य को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए।
  126. प्रश्न- सतत् शिक्षा की प्रमुख विशेषताएँ एवं उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
  127. प्रश्न- सतत् शिक्षा के प्रमुख अभिकरण की व्याख्या कीजिए।
  128. प्रश्न- मिलेनियम डेवलपमेंट गोल्स (MDGs) व सतत् विकास लक्ष्य (एसडीजी) क्या है? बताइए।

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